| 1. | कवि तब उस अर्थ की प्रतिपत्ति करता है जिससे पुन: राग
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| 2. | अभिधेय है, जो अर्थ वाक् में है ही, उसकी प्रतिपत्ति की प्रार्थना
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| 3. | था और इसीलिए वाक् में अर्थ की प्रतिपत्ति की प्रार्थना की थी।
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| 4. | नहीं होता; जो बुद्धि उस आलोक से लाभ उठा कर नई प्रतिपत्ति करती है,
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| 5. | इस प्रतिपत्ति से शान्त रस का महत्व अन्य रसों की तुलना में सर्वोपरी सिद्ध होता है।
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| 6. | इस प्रतिपत्ति से शान्त रस का महत्व अन्य रसों की तुलना में सर्वोपरी सिद्ध होता है।
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| 7. | अर्थात-सत्य वह है चाहे वह ठगी, भ्रम, प्रतिपत्ति बन्ध्या युक्त हो अथवा रहित ।
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| 8. | अर्थ उसे दिया गया है, वह संकेत है जिसमें अर्थ की प्रतिपत्ति की गयी है।
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| 9. | तब इस बात को उन्होंने समझा था और इसीलिए वाक् में अर्थ की प्रतिपत्ति की प्रार्थना की थी।
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| 10. | कवि तब उस अर्थ की प्रतिपत्ति करता है जिससे पुन: राग का संचार हो, पुन: रागात्मक सम्बन्ध स्थापित हो।
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