वहां के दो-तीन दशकों के साहित्य प्रयोजनहीनता और उद्देश्यहीनता को अभिव्यक्त कर रहे हैं।
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वहां के दो-तीन दशकों के साहित्य प्रयोजनहीनता और उद्देश्यहीनता को अभिव्यक्त कर रहे हैं।
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बताने की जरूरत नहीं कि यूरोपीय और अमेरिकी समाज इन दिनों प्रयोजनहीनता का दंश झेल रहा है।
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बताने की जरूरत नहीं कि यूरोपीय और अमेरिकी समाज इन दिनों प्रयोजनहीनता का दंश झेल रहा है।
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शिरीष ढोबले की कविता ' प्रदक्षिणा है यह' अपने भक्तिवाद-रहस्यवाद से स्वयं ही रोमांचित है और आत्माभिनंदन कर रही है तो पाठक भी उन्हें उनके स्तोत्रों की प्रयोजनहीनता पर छोड़ रहा है.
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शिरीष ढोबले की कविता ' प्रदक्षिणा है यह' अपने भक्तिवाद-रहस्यवाद से स्वयं ही रोमांचित है और आत्माभिनंदन कर रही है तो पाठक भी उन्हें उनके स्तोत्रों की प्रयोजनहीनता पर छोड़ रहा है.
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महत्वाकांक्षा अपनी तरफ़ आकर्षित करती है तो जीवन की प्रयोजनहीनता का विचार अपनी और बकौल ग़ालिब-ईमां मुझे रोके है तो खीचें है मुझे कुफ्र, काबा मेरे पीछे है कलिसा मेरे आगे.......
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शिरीष ढोबले की कविता ' प्रदक्षिणा है यह ' अपने भक्तिवाद-रहस् यवाद से स् वयं ही रोमांचित है और आत् माभिनंदन कर रही है तो पाठक भी उन् हें उनके स् तोत्रों की प्रयोजनहीनता पर छोड़ रहा है.
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पाँव चलने को विवश थे, जब विवेक-विहीन था मन ' जैसी पंक्तियों के आधार पर जिन आलोचकों ने बच्चन के काव्य में मानव की उद्देश्यहीनता, लक्ष्यहीनता, प्रयोजनहीनता एवं ध्येयहीनता मानी है उन्हें अपनी मान्यताओं एवं स्थापनाओं में सच्चे मन से बदलाव करना चाहिए तथा इसके लिए यदि प्रमाण के लिए बच्चन की काव्य पंक्ति ही जरूरी हो तो उनके लिए बच्चन की निम्न पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं जिनमें एक पंक्ति में कवि अपने रचना कर्म के बारे में स्वयं कहता है-‘