जिस खांसी में प्रसेक (बलगम) निकलता है उसे आर्द्रकास (गीली खांसी) कहा जाता है।
2.
यह मूत्र प्रसेक पाश्वकीय ग्रंथि से निकलने वाला लसीला द्रव होता है, जो कामुक चिंतन करने पर बूंद-बूंद करके मूत्र मार्ग और स्त्री के योनि मार्ग से निकलता है, ताकि इन अंगों को चिकना कर सके।
3.
यह मूत्र प्रसेक पाश्वकीय ग्रंथि से निकलने वाला लसीला द्रव होता है, जो कामुक चिंतन करने पर बूंद-बूंद करके मूत्र मार्ग और स्त्री के योनि मार्ग से निकलता है, ताकि इन अंगों को चिकना कर सके।
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यह मूत्र प्रसेक पाश्वकीय ग्रंथि से निकलने वाला लसीला द्रव होता है, जो कामुक चिंतन करने पर बूंद-बूंद करके मूत्र मार्ग और स्त्री के योनि मार्ग से निकलता है, ताकि इन अंगों को चिकना कर सके।
5.
जब वायु कुपित होता है तो सम्यक संशोधन न होने से देह में उसकी वृद्धि किंवा ह्यास व प्रकोप होकर तज्जनित रोग होते हैं जैसे कि वायु कुपित हो और उसका रूक्ष गुण अधिक वृद्धि को प्राप्त हो तो पित्त प्रसेक में याकृत पित्त शुष्कता को प्राप्त होकर तीव्र शूल पैदा होता है जिसे कि आधुनिक निदान में