तर्क और बुद्धि द्वारा न हो, कलात्मक प्रातिभज्ञान के जरिये ही सही।
2.
गुरू सियाग इशारा करते हैं कि पुराने हिन्दू ऋषि पातंजलि, जो ऐसे पहले ऋषि हैं जिन्होंने योग की विशाल पद्धति के नियम बनाये हैं, वह स्पष्ट रूप से अपनी पुस्तक ‘योग सूत्र‘ में कहते हैं कि एक साधक को प्रातिभज्ञान (अन्तर्ज्ञान की योग्यता) विकसित होना सम्भव है जो गहराई के साथ सुदूर पूर्व तथा भविष्य में देख सकने योग्य बनाता है।