संदेह के फणधर अनेकों आह! किसने गंध-धर्मी गात पर लटका दिये? विश्वास-कण आस्था-कनी दे दो मुझे!.
5.
प्रश् नों का सहस्र फणधर, फुफकारें मारता सामने आने लगा-क्या पूछोगे? किससे पूछोगे? किस हैसियत में पूछोगे? एक अंगुली सामने करोगे तो तीन तुम्हारी अपनी तरफ मुड़ेंगी ।
6.
कान्हा का दुःसाहस ही तो है जिसने इतिहास रच दिखा डाला, सहस्त्र फणधर के हर फण को नाथ, जूझते हुए उसकी कुण्डली की मारक जकड़ से, विषदाता दाँतों को तोड़-ताड़ उसके आतंक के काले अन्धेरे को चीर कर निकल आया श्यामा यमुना में से।