इसलिए, उस में एकता, सहयोग, उन्नति, एवं फलदायकता होना चाहिए (इफि.2:19; 1कुरु.1:10; यूह.13:35; गल.6:1,2)।
2.
अर्थात् विग्रह, हविष, भोग, ऐश्वर्य, प्रसन्नता और फलदातृत्व (फलदायकता) ये पाँच विग्रह कहे जाते हैं।
3.
इस महाकाव्य में स्त्री एवं भूमि की फलदायकता (उत्पादकता) एवं फलहीनता या अनुत्पादकता (बांझपन) के बीच का संघर्ष केन्द्रीय मूल्य के रूप में उभर कर सामने आया है।