धम्मपद की एक गाथा में बुद्ध स्पष्ट करते हैं, “जैसे कोई पुष्प सुंदर और वर्धयुक्त होने पर भी गंधरहित हो, वैसे ही अच्छी कही हुई बुद्धवाणी भी फलरहित होती है यदि कोई उसके अनुसार आचरण न करे।
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धम्मपद की एक गाथा में बुद्ध स्पष्ट करते हैं, “ जैसे कोई पुष्प सुंदर और वर्धयुक्त होने पर भी गंधरहित हो, वैसे ही अच्छी कही हुई बुद्धवाणी भी फलरहित होती है यदि कोई उसके अनुसार आचरण न करे।
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जैसे आम आदि उन्नत वृक्षों की शाखापर स्थित, सूख जाने के कारण अनेक कण्टकों से आकीर्ण, पुष्पशून्य और फलरहित क्षीण मंजरी आनन्दप्रद नहीं होती, वैसे ही यह तृष्णा न आनन्दप्रद है, न सुखप्रद है और न फलप्रद है, किन्तु व्यर्थ-विस्तृत है, अमंगलकारिणी है और क्रूर है।।
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बाहर से आने वालों ने हिंदू-धर्म के इस जर्जरित वृक्ष को देखा और परामर्श दिया कि इस प्राचीन सूखे, फलरहित, अनावश्यक, भार रूप झाँकर को रखने से क्या लाभ? इसको उखाड़ क्यों नहीं फेंकते और इसके स्थान में एक ताजा, होनहार, ' चिकने-चिकने पात ' वाला बिरवा क्यों नहीं लगा लेते? ” इस परामर्श का भिन्न-भिन्न लोगों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से स्वागत किया।