इतनी कोमल जैसे रूही का कोई फ़ाहा ले रखा हो हाथो में..
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इतनी कोमल जैसे रूही का कोई फ़ाहा ले रखा हो हाथो में..
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इसके बावजूद ये उनके ज़ख़मों पर तात्कालिक राहत का फ़ाहा रखने का काम कर सकता है.
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एकदम सफ़ेद गोरी चूचियाँ! जब उन्हें मुँह में लेकर चूसा तो ऐसा लगा जैसे कोई रुई का फ़ाहा हो...
5.
होगा भी तो कहीं किसी मयखाने मे, किसी कोठे पर या ऐसी ही किसी जगह पर जाकर फ़ाहा लगा लेंगे, आपका क्या होगा जनाबे-आली? और अगर फ़िर भी दर्द असहनीय हो जायेगा तो गली गली में पगलाये फ़िरने वालों की संख्या थोड़ी सी बढ़ जायेगी, बस।
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स्थानीय भाषाओं का दर्द उनके वर्गीय चरित्र के अनुरूप था जबकि मलाईदार सामंती-कुलीन तबकों को अपनी मानसिक संतुष्टी (ऐय्याशी) के लिये जिस सुरमई फ़ाहे की जरुरत थी, वह रुहानी फ़ाहा फ़राहम कराने का काम उर्दू भाषा ने पूरा किया, इसके मिठास पर चर्चा करने वाले, उस पर रात-दिन एक करने वाले अदीब भारतीय इतिहास के इस करुणामय तथ्य को भूल जाते हैं कि आम जनता के लिये उस कठिन समय में इस मिठास का लुत्फ़ लेने वालों के हाथ कोहनियों तक और पैर घुटनों तक खून में रंगें हैं.