जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उदयपुर में सभी ने मिलकर आयड़ नदी सुधार का बायोतकनीकी व जनसहभागिता आधारित मॉडल तैयार किया है तो उन्होंने तुरंत निश्चय किया कि उदयपुर जाकर इसे देखा जाए।
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नागरिकों की सहभागिता, स्थानीय पहल तथा बायोतकनीकी के संयोजन से जल स्त्रोतों, झीलों, नदियों का प्रदूषण रोका जा सकता है तथा उन्हें भावी पीढियों के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
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एक और चौंकाने वाला सच यह भी है कि बायोतकनीकी विभाग के एक शक्तिशाली नोडल ऑफिसर डॉ केके त्रिपाठी-जो एक ऐसी विशेषज्ञ समिति (आरसीजीएम) के सदस्य भी हैं जो जीईएसी को भेजे जाने से पहले जीएम फसलों के परीक्षण की स्वीकृति देती है-के खिलाफ पुलिस और केंद्रीय सतर्कता आयोग में शिकायतें दर्ज की गई हैं.