खेत बॅंट गये, बँट गये रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे।।
2.
किसी भी तरह का बॅंटवारा तत्कालीन समाज के राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों के अनिवार्य परिणाम के तौर ही हमारे सामने आता है।
3.
गड करी ने जो तर्क दिये है उनके अनुसार बाबा यदि नई पार्टी बनाते है तो जो वोटों का बॅंटवारा होगा, उसका लाभ कॉंग्रेस को मिलेगा।
4.
रोटी बना रही है औरत चक्की चला रही है खाना खा रहा है पुरूष औरत धान रोप रही है औरत फसल काट रही है बॅंटवारा कर रहा है आदमी खरीद बेच रहा है आदमी औरत नर्स बनकर बीमार की सेवा कर रही है डॉक्टर और बीमार है आदमी, गारा ईटे ढो रही है औरत मालिक, ठेकदार, इन्जीनियर है पुरूष इज्जत लुट रही है औरत की आदमी की पता नहीं क्यों नहीं लुटती क्या उसके पास नहीं होती लूट रहा है पुरूष है बलात्कारी,सिपाही,न्यायाधीश।