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भावविवेक वाक्य

उच्चारण: [ bhaavevivek ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • भावविवेक या भाव्य (तिब्बती भाषा:
  • भावविवेक की भाँति वे स्वतन्त्र अनुमान का प्रयोग भी स्वीकार करते हैं।
  • भावविवेक के मत में परमार्थत: नि: स्वभावता ' परमार्थसत्य ' है।
  • आचार्य भावविवेक या भव्य एवं ज्ञानगर्भ आदि इस मत के प्रमुख आचार्य हैं।
  • भावविवेक विषय की दृष्टि से तथ्यसंवृति और मिथ्यासंवृति-ये दो भेद मानते हैं।
  • कमलबुद्धि शून्यवाद के प्रमुख आचार्य बुद्धपालत तथा आचार्य भावविवेक (भावविवेक या भव्य) के पट्ट शिष्य थे।
  • कमलबुद्धि शून्यवाद के प्रमुख आचार्य बुद्धपालत तथा आचार्य भावविवेक (भावविवेक या भव्य) के पट्ट शिष्य थे।
  • भावविवेक की भाँति वे भी ' परमार्थत: ' नि: स्वभावता ' को परमार्थ सत्य मानते हैं।
  • का विचार है कि भावविवेक उन प्रथम तर्कशास्त्रियों में से हैं जिन्होने ' प्रयोग-वाक्य' के रूप में विधिवत उपपत्ति (
  • आचार्य शान्तरक्षित ने अपनी रचनाओं में बाह्यार्थों की सत्ता मानने वाले भावविवेक का खण्डन किया और व्यवहार में विज्ञप्तिमात्रता की स्थापना की है।
  • भावविवेक या भाव्य (तिब्बती भाषा: slob-dpon bha-vya or skal-ldan/legs-ldan, c.500-c.578), बौद्ध धर्म के माध्यमक शाखा के स्वतंत्रिक परम्परा के संस्थापक दार्शनिक थे।
  • 210), का विचार है कि भावविवेक उन प्रथम तर्कशास्त्रियों में से हैं जिन्होने 'प्रयोग-वाक्य' के रूप में विधिवत उपपत्ति (formal syllogism) का प्रयोग किया।
  • इतना ही नहीं, जितने भी सूत्रवचन विज्ञप्तिमात्रता का प्रतिपादन करते हुए से दृष्टिगोचर होते हैं, भावविवेक के मतानुसार उनका वैसा अर्थ नहीं है।
  • आचार्य भावविवेक, ज्ञानगर्भ, शान्तरक्षित, कमलशील आदि स्वातन्त्रिक माध्यमिकों का इस देशना की नेयार्थता और नीतार्थता के बारे में प्रासङ्गिक माध्यमिकों से मतभेद हैं।
  • परंतु छठी शताब्दी के एक बौद्ध आचार्य भावविवेक या भव्य ने अपने ग्रंथ माध्यमिकहृय में वेदांत दर्शन का विवेचन करते हुए गौड़पाद की एक कारिका उद्धृत की है।
  • परंतु छठी शताब्दी के एक बौद्ध आचार्य भावविवेक या भव्य ने अपने ग्रंथ माध्यमिकहृय में वेदांत दर्शन का विवेचन करते हुए गौड़पाद की एक कारिका उद्धृत की है।
  • * [[भावविवेक बौद्धाचार्य | भावविवेक]] विज्ञानवादियों से पूछते हैं कि उस परिकल्पित लक्षण का स्वरूप क्या है, जो लक्षणनि: स्वभाव होने के कारण नि: स्वभाव कहलाता है।
  • * [[भावविवेक बौद्धाचार्य | भावविवेक]] विज्ञानवादियों से पूछते हैं कि उस परिकल्पित लक्षण का स्वरूप क्या है, जो लक्षणनि: स्वभाव होने के कारण नि: स्वभाव कहलाता है।
  • आचार्य भावविवेक, ज्ञानगर्भ, शान्तरक्षित आदि स्वातन्त्रिक माध्यमिकों के अनुसार प्रज्ञापारमितासूत्रों में आर्यशतसाहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता आदि कुछ सूत्र नीतार्थ हैं, क्योंकि इनमें सभी धर्मों की परमार्थत: नि: स्वभावता निर्दिष्ट है।
  • उसकी जैसी व्याख्या आचार्य भावविवेक करते हें, उसी तरह का अर्थ मध्यमकालोक में भी वर्णित है, अत: ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य शान्तरक्षित भी व्यवहार में स्वलक्षणत: सत्ता स्वीकार करते हैं।
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