भोजनं वाक्य
उच्चारण: [ bhojenn ]
उदाहरण वाक्य
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- उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥गीता १ ७ ।
- यूं तो सिद्धांत है. जीवो जीवस्य भोजनं..
- उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥१७-१०॥
- अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
- गोपालः गृहम् आगत्य भोजनं अकरोत् ।
- सुन्दर रंगोली, सुन्दर भोजनं, सुन्दर 'रश्मिम रविजम '....
- कुग्रामवासः, कुलहीन सेवा, कु भोजनं, क्रोधमुखी च भार्या।
- होता, जैसा-”मध्याद्दे भोजनं कुर्यात्“ तो इसमें न करने से कुछ पाप नहीं
- न यज्ञा: अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ ४ ॥
- उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥ १० ॥ अध्याय १७ अर्थात-खाने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया,...
- मगर विशेष परिस्थितियों में जहाँ शाकाहार उपलब्ध नहीं है, जीवो जीवस्य भोजनं के अलावा और विकल्प भी क्या है...!
- सृष्टि-व्यवस्था ‘ जीवो जीवस्य भोजनं ' के सिद्धांत पर आधारित है, न कि बाघ और बकरी को एक घाट पर इकट्ठा देखने की.
- सुन्दर रंगोली, सुन्दर भोजनं, सुन्दर ' रश्मिम रविजम '.... ओणम के त्यौहार की बहुत सुन्दर सौगात मिली तुम्हे और तुमने इसे सबके साथ बांटा भी इतने ही सुन्दर तरीके से...
- आईये हम माँसाहार का परिहार करें-“ जीवो जीवस्य भोजनं ” अर्थात जीव ही जीव का भोजन है जैसे फालतू के कपोलकल्पित विचार का परित्याग कर “ मा हिँसात सर्व भूतानि ” अर्थात किसी भी जीव के प्रति हिँसा न करें-इस विचार को अपनायें.
- हिन्दी ने उनमें से हजारों लोकोक्तियों को आत्मसात् कर लिया है, जैसे ‘ अजीर्वे भोजनं विषम ‘, ‘ अनभ्यासे विषं शास्त्रम् ', ‘ अति सर्व वर्जयेत ‘, ‘ उद्योगिन पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी ', ‘ परोपकाराय संता विभूतयः ', ‘ मौन सम्मति लक्षणम्।
- आईये हम माँसाहार का परिहार करें--” जीवो जीवस्य भोजनं ” अर्थात जीव ही जीव का भोजन है जैसे फालतू के कपोलकल्पित विचार का परित्याग कर “ मा हिँसात सर्व भूतानि ” अर्थात किसी भी जीव के प्रति हिँसा न करें--इस विचार को अपनायें.
- यथा-‘ कलौ पाराशरी स्मृतिः ' राजा: क्यों पुरोहित जी, आप इसमें क्या कहते हैं? पुरोहित: कितने साधारण धर्म ऐसे हैं कि जिनके न करने से कुछ पाप नहीं होता, जैसा-” मध्याद्दे भोजनं कुर्यात् “ तो इसमें न करने से कुछ पाप नहीं है, वरन व्रत करने से पुण्य होता है।
- उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्.... गीता १ ७ / १ “ कुत्ते भी उनके भोजन पत्र में मुंह डालकर स्वतंत्रता पूर्वक खाते थे ” जैसा की हम उपर देख चुके है की ये लावारिस था और मानसिक बीमार भी, इसलिए कुत्ते ने इसकी पत्तल में मुह डाल दिया और इसे पता ही नही पड़ा! 7. ईश्वरीय अवतार का ध्येय साधुजनों का परित्राण (रक्षा) और दुष्टों का संहार करना है ।
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