मत्स्यरूप में मैंने मनु तथा आपलोगों (सप्तर्षिगण) की रक्षा की है।
3.
इस प्रकार भगवान ने मत्स्यरूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, संसार के प्राणियों का भी अमित कल्याण किया।
4.
इस तिथि को रेवती नक्षत्र में, विष्कुंभ योग में दिन के समय भगवान का प्रथम अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव भी माना जाता है-
5.
इस तिथि को रेवती नक्षत्र में, विष्कुंभ योग में दिन के समय भगवान का प्रथम अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव भी माना जाता है-
6.
पर्भो! आपने वेदों, ऋिषयों, औषिधयों और सत्यवर्त आिद की रक्षा-दीक्षा के िलए मत्स्यरूप धारण िकया था और पर्लय के समुदर् मंे स्वच्छन्द िवहार िकया था।
7.
इस तिथि को रेवती नक्षत्र में, विष्कुंभ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव भी माना जाता है-' कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा, रेवत्यां योगविष्कुम्भे दिवा द्वादशनाडिकाः ।
8.
रक्षामिच्छस्ं तनूर्धत्ते धर्मस्यार्थ तथैव हि॥ (श्रीमदभागवत 8 / 24 / 5) महाभारत में प्रजापति के मत्स्यरूप का कारण केवल मनु आदि की रक्षा है, किंतु श्रीमद्भागवतमहापुराण में हयग्रीव दैत्य से वेदों के उद्वारका महत्वपूर्ण कार्य भी इस अवतार के साथ जुड़ा है।