सिखला रहा ' त्याग' की पट्टी,कैसा ज्ञानी है तू मित्र!-नहीं सूझता क्या तुझको यह यौवन,यह मधु,यह मधुकाल [8]
3.
और, और ला;फिर प्याले पर प्याला ढाल; धर रख,गूढ़-ज्ञान गाथा को,व्रत विवेक चूल्हे में डाल. सिखला रहा ‘त्याग' की पट्टी,कैसा ज्ञानी है तू मित्र!-नहीं सूझता क्या तुझको यह यौवन,यह मधु,यह मधुकाल [8]
4.
और, और ला;फिर प्याले पर प्याला ढाल;धर रख,गूढ़-ज्ञान गाथा को,व्रत विवेक चूल्हे में डाल.सिखला रहा ‘त्याग' की पट्टी,कैसा ज्ञानी है तू मित्र!-नहीं सूझता क्या तुझको यह यौवन,यह मधु,यह मधुकाल [8] कवि हर रोज सोचता है कि वो पीना छोड़ देगा लेकिन आज तो बसंतोत्सव है और कवि छ्क कर पीना चाहता है.