ये तंतु पत्तियों की मध्यशिरा की विशेष वृद्धि के फलस्वरूप बनते हैं।
3.
इसमें पौधे बहुत ही साधारण और पृष्ठाधरी रूप से विभेदित (dorsiventrally differentiated) होते हैं, पर मध्यशिरा (mid rib) नहीं होती।
4.
पत्र फलक की ऊपरी सतह के खुरच जाने से निचला एपिडर्मिस सफेद लकीर की तरह हो जाता है और यह मध्यशिरा के समांतर होता है।
5.
यहीं से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका और ग्रंथि में उत्पन्न हुए उन लसीका स्त्रावों को ले जाती है जो अंत में मुख्य लसीकावाहिनी द्वारा मध्यशिरा में पहुँच जाते हैं।
6.
यहीं से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका और ग्रंथि में उत्पन्न हुए उन लसीका स्त्रावों को ले जाती है जो अंत में मुख्य लसीकावाहिनी द्वारा मध्यशिरा में पहुँच जाते हैं।
7.
नीचे की ओर बढ़कर मध्यशिरा पत्ती के डंठल का रूप धारण कर लेती है और जब तितली पौधे पर बैठती है तो पता चलता है कि पत्ती टहनी से निकल रही है।
8.
भीषण प्रकोप की दशा में गन्ना पत्तियों की केवल मध्यशिरा ही शेष रह जाती है जिसके कारण गन्ना पौधों की कायिकी प्रभावित होकर बढ़वार रुक जाती है एवं उपज कम प्राप्त होती है।