वि.: (आप ही आप) वाह रे महानुभावता! (प्रगट) अच्छा आज सांझ तक और सही।
3.
अतः आइए, हम ब्राह्मणों की इस अपूर्व मेधा के साथ तथागत के हृदय, महानुभावता और अद्भुत लोकहितकारी शक्ति को मिला दें ।
4.
ध.: (आश्चर्य से आप ही आप) वाह रे महानुभावता! (प्रगट) तो इसके स्वर्ण बना कर आप अपना दास्य छुड़ा लें।
5.
ध.: (आश्चर्य से आप ही आप) धन्य हरिश्चन्द्र! धन्य तुम्हारा धैर्य! धन्य तुम्हारा विवेक! और धन्य तुम्हारी महानुभावता! या चलै मेरु बरु प्रलय जल पवन झकोरन पाय।