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मातरिश्वा वाक्य

उच्चारण: [ maaterishevaa ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • स्वर्ग से मातरिश्वा ने धरती पर इन्हें लाया।
  • यं वैदिका मंत्रदृशः पुराणाः इन्द्रं यमं मातरिश्वा नमाहुः
  • तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥ ४ ॥
  • सं मातरिश्वा संधाता समुदेष्ट्री दधातु नौ।।
  • सं मातरिश्वा सं धाता समुदेष्टरी दधातु नौ॥-ऋग्वेद १ ० ।
  • अर्थात् “उस एक ही परमेश्वर के तत्वदर्शी ऋषि-इन्द्र, अग्नि, यम, मातरिश्वा आदि अनेक नामों से पुकारते हैं।
  • अग्नि का जन्म स्वर्ग में ही मुख्यत: हुआ, जहाँ से मातरिश्वा ने मनुष्यों के कल्याणार्थ उसका इस भूतल पर आनयन किया।
  • (तस्मिन्) उसी में (मातरिश्वा) आत्मा, अन्तरिक्ष (अपः) कर्मों-कर्मफलों, लोकों को (दधाति) धारण करता है।
  • उसी को मेधावीजन इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, दिव्य, सुपर्ण, गरुत्मान्, यम एवं मातरिश्वा (पवन) कहते हैं।
  • सं मातरिश्वा सं धाता समुदेष्ट्री दधातु नौ॥ अर्थात हे देवगण! आप निश्चय करके जानें, हम दोनों के हृदय जल के सामन मिले हुए हैं ।
  • ॠग्वेद [4] में कथन है: ' मातरिश्वा ने तुम में से एक को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा ; गरुत्मान ने दूसरे को मेघशिलाओं से।
  • ४ ६-उसी एक परमात्मा को इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, दिव्या, सुपर्ण, गरुत्मान, यम और मातरिश्वा आदि अनेक नामों से कहते हैं.
  • हम प्राणवायु (मातरिश्वा) की तरह समता रखेंगे, जगत के धारणकर्त्ता (धाता) परमात्मा की तरह एक-दूसरे को धारण करेंगे अर्थात स्वरूप से, स्वभाव से और बुद्धि से एक हो जायेंगे ।
  • इन्द्र, मित्र, वरूण, अग्नि, गरूत्मान, यम और मातरिश्वा आदि नामों से एक ही सत्ता का वर्णन ब्रह्मज्ञानियों द्वारा अनेक प्रकार से किया गया है-‘‘ इन्द्रं मित्रं वरूणमग्निमाहुदथो दिव्यः स सुपर्णो गरूत्मान्।
  • मातरिश्वा पवनदेव बड़े दीन स्वर में कहने लगे, ' देव, इस अतिसुखासुर नामक दैत्य के वशीकरण में मानव ने भी दानव का रूप धारण कर लिया है, और हमें विविध भांति से बंदी बनाया गया है।
  • परमेश्वर एक ही हैं ज्ञानी लोग उसे विभिन्न नामो से पुकारते हैं, उसे इन्द्र कहते हैं, मित्र कहते हैं, वरुण कहते हैं, अग्नि कहते हैं, और वही दिव्या सुपर्ण और गरुत्मान भी हैं, उसे ही वे यम और मातरिश्वा भी कहते हैं.(ऋग्वेद १.१६४.४६) २.
  • एकात्मता मंत्र का अर्थ प्राचीन काल के मंत्र दृष्टा ऋषियों ने जिसे इन्द्र (देवताओं के राजा, वर्षा के देवता), यम (काल के देवता), मातरिश्वा (हर जगह विद्यमान) कहकर पुकारा और जिस एक अनिर्वचनीय (जिसका वर्णन नहीं किया जा सके) को वेदांती (वेद, शास्त्र के ज्ञाता) ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं.
  • १. परमेश्वर एक ही हैं ज्ञानी लोग उसे विभिन्न नामो से पुकारते हैं, उसे इन्द्र कहते हैं, मित्र कहते हैं, वरुण कहते हैं, अग्नि कहते हैं, और वही दिव्या सुपर्ण और गरुत्मान भी हैं, उसे ही वे यम और मातरिश्वा भी कहते हैं. (ऋग्वेद १.
  • हवाओं में बिखरता है शीशा, भरभरा कर ढह जाते हैं अनगिन मकान, खंडहरों में गूंजती है अचीन्ही ध्वनियाँ, चक्कर काटते हैं चीत्कारते गिद्ध, कांपने लगते हैं बहुत से भयभीत धड, अभिशप्त हो जाती है पूरी शताब्दी, किसी दूसरे लोक की खोज में निकल पड़ती है अग्नि और कोई मातरिश्वा उसे वापस नहीं लाता.
  • परम ऐश्वर्य संपन्न होने से परमेश्वर को इन्द्र, सबका स्नेही होने से मित्र, सर्वश्रेष्ठ और अज्ञान व अन्धकार निवारक होने से वरुण, ज्ञान स्वरुप और सबका अग्रणी नेता होने से अग्नि, सबका नियामक होने से यम, आकाश, जीवादी में अन्तर्यामिन रूप में व्यापक होने से मातरिश्वा आदि नामों से उस एक की ही स्तुति करते हैं.

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