जाने से पूर्व वह होठों पर अपने होठ चिपका लेते थे, अपनी जीभ को उसके मुख-विवर के भीतर घुसा देते थे।
3.
उच्चारण प्रक्रिया को समझने में सरलता हो, इसलिए यह जानने की आवश्यकता है, कि, उच्चारण की दष्टिसे क और ग दोनोंका उचारण मुख-विवर के कंठ के निकट के भागों से ही आता है।
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उच्चारण प्रक्रिया को समझने में सरलता हो, इसलिए यह जानने की आवश्यकता है, कि, उच्चारण की दष्टि से क और ग दोनों का उचारण मुख-विवर के कंठ के भाग से ही आता है।
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आगे व्यास ह्युस्टन कहते हैं, कि, इन प्राचीन भारतीय ऋषियों ने, एकाग्रता से, ध्यान दे कर, बार बार मुख से अलग अलग ध्वनियों का उच्चारण करते हुए, जानने का प्रयास किया, कि ध्वनि मुख-विवर के, किस सूक्ष्म अंग से, कैसे और कहाँ से जन्म लेती है? उन्हों ने मुख-विवर का वैज्ञानिक अध्ययन किया, और ध्वनियों के मूल स्थानों को ढूंढ निकाला।
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आगे व्यास ह्युस्टन कहते हैं, कि, इन प्राचीन भारतीय ऋषियों ने, एकाग्रता से, ध्यान दे कर, बार बार मुख से अलग अलग ध्वनियों का उच्चारण करते हुए, जानने का प्रयास किया, कि ध्वनि मुख-विवर के, किस सूक्ष्म अंग से, कैसे और कहाँ से जन्म लेती है? उन्हों ने मुख-विवर का वैज्ञानिक अध्ययन किया, और ध्वनियों के मूल स्थानों को ढूंढ निकाला।