मैं शरीर हूँ-यह दर्पणमें दिखनेवाले मुखकी तरह दीखता है, वास्तवमें है नहीं ।
2.
अब हनुमान् जी दिनभर रामजीके सामने ही बैठे रहे और उनके मुखकी तरफ देखते रहे ; क्योंकि रामजीको किस समय जम्हाई आ जाय, इसका क्या पता? जब रात हुई, तब भी हनुमान् जी उसी तरह बैठे रहे ।
3.
जिसके पैर भी न देखे थे, आँखें पीछे ही पीछे लगी रहीं उनके, छोड़ कर मुंह देखना था ज्ञान नहीं था, अंधा न था जो विश्वास था, उपहास की उक्तिओं में संदेशा, अंदेशा मुखकी रगों में पिपिरही थी अनमनी, वैसा संगीत था जिसमें नींद थी जागने के बावजूद, कभी-कभी संतुष्ट सोते पुष्ट होते अध्याहास महाधनी, जामुन के रंग की यात्राएं थी शायद मन-घनी अधबनी.
4.
जिसके पैर भी न देखे थे, आँखें पीछे ही पीछे लगी रहीं उनके, छोड़ कर मुंह देखना था ज्ञान नहीं था, अंधा न था जो विश्वास था, उपहास की उक्तिओं में संदेशा, अंदेशा मुखकी रगों में पिपिरही थी अनमनी, वैसा संगीत था जिसमें नींद थी जागने के बावजूद, कभी-कभी संतुष्ट सोते पुष्ट होते अध्याहास महाधनी, जामुन के रंग की यात्राएं थी शायद मन-घनी अधबनी.