मुण्डकोपनिषद् वाक्य
उच्चारण: [ munedkopenised ]
"मुण्डकोपनिषद्" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- ) मुण्डकोपनिषद् का संबंधित वचन अधोलिखित हैः-
- '-मुण्डकोपनिषद् ॥ २. २. ८ ॥
- ↑ मुण्डकोपनिषद् तृतीय मुण्डक श्लोक 6
- यही बात हजारों बरस पहले मुण्डकोपनिषद् के ऋषि ने कही।
- सत्यमेव जयते किस ग्रन्थ से उद्धत किया गया है? उत्तर: मुण्डकोपनिषद् से3.
- प्राचीन ग्रंथ मुण्डकोपनिषद् एवं गीतादि प्राचीन ग्रंथ आदि वचन सत्य की महिमा का उद्घोष करते हैं।
- मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, अथर्वा, अंगी, सत्यवह और अंगिरा की ब्रह्मविद्या की आचार्य परंपरा थी।
- मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, अथर्वा, अंगी, सत्यवह और अंगिरा की ब्रह्मविद्या की आचार्य परंपरा थी।
- मुण्डकोपनिषद् के अनुसार प्रणव धनुष है, आत्मा बाण है और ब्रह्म उसका लक्ष्य कहा जाता है.
- मुण्डकोपनिषद् के (3-1) में ‘ सर्वदा सत्यसैव जयो भवति ' का संक्षिप्त रूप है सत्यमेव जयते।
- मुण्डकोपनिषद् कहती है, “ सत्य ही जय को प्राप्त होता है, मिथ्या नहीं (सत्यमेव जयति नानृतं).
- भारत आने वाला पहला ज्ञात चीनी यात्री कौन था? उत्तर: फाह्यान3. 'सत्यमेव जयते' किस उपनिषद् से उद्धृत है?उत्तर: मुण्डकोपनिषद् से4.
- मुण्डकोपनिषद् का कहना है कि ये कर्म क्षुद्र नौकाओं के समान हैं जिनके द्वारा भवसागर को पार नहीं किया जा सकता.
- इसे मैंने ‘ संस्कृत सूक्ति रत्नाकर ' नाम की पुस्तक में अवश्य पाया, और वहां इसका संदर्भ दिया है मुण्डकोपनिषद् ।
- मुण्डकोपनिषद् में ब्रह्म के स्वरूप के सम्बन्ध में कुछ कहने के पूर्व यह कहा गया है कि दो विद्याएँ जानने योग्य हैं-एक परा और दूसरी अपरा.
- मुण्डकोपनिषद् का कथन है अग्नि होत्री को यह आहुतियां सूर्य की किरणें बनकर उस स्वर्ग लोक में पहुँचा देती हैं, जहां देवताओं का एकमात्र पति निवास करता है (द्वितीय खण्ड श्लोक 5) छांदोग्योपनिषद् में उदकोशल नामक एक ब्रह्मचारी को, जो सत्यकाम जावाल के यहां ब्रह्म विद्या सीखने गया था, अग्नियों द्वारा ब्रह्म विद्या का उपदेश मिलने का वर्णन मिलता है, क्योंकि उसने बारह वर्षों तक अग्नियों की सेवा की थी ।
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