मूत्राशय खाली होने वाली क्रिया को ‘ मूत्रण ' कहा जाता है।
2.
असयंत मूत्रण एक प्रमुख रुग्णता है जिसका समाधान किए जाने की आवश्यकता है।
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असंयत मूत्रण, ह्रदय वाहिका रोग, उन्माद तथा सन्घिशोथ जैसे खतरनाक रोग भी संभव हैं।
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तथापि, इस अवस्था में मधुमेह, कैंसर, असंयत मूत्रण, ह्रदय वाहिका रोग, उन्माद तथा सन्घिशोथ जैसे खतरनाक रोग भी संभव हैं।
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बार बार मूत्र के लिए जाना, विशेषकर रात्रि के समय, अधूरे मूत्रण का अहसास, बूंद बूंद मूत्र टपकना तथा अंतत पूरी तरह से मूत्र का रुक जाना-सामान्य लक्षणों में आता है।
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जैसे-जैसे शिशु की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे मस्तिष्क का विकास होता जाता है, जिससे बाह्य संकोचिनी के एच्छिक पेशी तंतुओं पर नियंत्रण बढ़ता जाता है और फिर मूत्रण की क्रिया इच्छित हो जाती है।