इसका संबंध काम मूलप्रवृत्ति के शारीरिक तथा मानसिक दोनों पक्षों से है।
4.
उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि नया करना मनुष् य की मूलप्रवृत्ति है।
5.
नौकरशाही की मूलप्रवृत्ति काम नहीं करने की ही रही है जिसके लिये किसी न किसी नियम कानून का तकनीकी आधार ढूंढ़ने में ही वह लगी रहती है।
6.
आनन्द की चिरन्तन खोज ही मानव की मूलप्रवृत्ति है और संस्कृति का अर्थचिन्तन तथा कलात्मक सर्जन की वे क्रियायें समझनी चाहिए जो मानव व्यक्तित्व औरजीवन के लिए साक्षात् उपयोगी न होते हुए भी उसे समृद्धि बनाने वाली है.