इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह-निर्माण, यज्ञ-कर्म आदि पुनीत कर्मकिए जाते हैं।
2.
वहां कोई पूजा-पाठ, यज्ञ-कर्म आदि नही होते तो भी वह धर्मशाला क्यों है?
3.
वहां कोई पूजा-पाठ, यज्ञ-कर्म आदि नही होते तो भी वह धर्मशाला क्यों है?
4.
गीता में आता है, ' हम अपने अंत: करण की शुद्धि के लिए यज्ञ-कर्म करेंगे ' ।
5.
उसने यज्ञ-कर्म संपन्न कराने वाल ऋत्विजों से पूछा, ' यज्ञ भंग के प्रायश्चित का विधान क्या है? '
6.
(मनु 0, 5-42) भावार्थ-वेद-कर्मज्ञ द्विज यज्ञ-कर्म में पशु वध करता है तो वह पशु-सहित उत्तम गति को प्राप्त करता है।
7.
अब आप को तो शायद यह भी नहीं पता होगा की वेदों में, गीता में या उपनिषदों में “ यज्ञ ” किस कर्म के लिए आया है, जो स्थूल अर्थ आपकी स्थूल बुद्धि में गम्य हुआ है उसी के अनुसार भी जब आपकी तिकड़में भ्रष्ट है तो वैदिक दर्शन के “ यज्ञ-कर्म ” के सन्दर्भ में तो आप जैसे वेदों आदि में हिंसा-मांसाहार सिद्ध करने वालों की बुद्धि पर तरस आता है.