अपने सुपरिचित रंगशिल्प अर्थात संवादशिल्प के सहारे कथाकार ने अंतत:
2.
इब्सन और चेखव के यथार्थवादी रंगशिल्प का हिन्दी में यह नया प्रयोग था।
3.
रंगशिल्प को आकार दे सकती है जिससे हम स्वयं अब तक परिचित नहीं हैं।
4.
यह खोज ही हमें वास्तविक नए प्रयोगों की दिशा में ले जा सकती है और उस रंगशिल्प को आकार दे सकती है जिससे हम स्वयं अब तक परिचित नहीं हैं।
5.
धनंजयः कंटेंट की जब बात आती है, तो कंटेंट ता आप पकड़ते हैं रेलेवेंट, लेकिन जब रंगशिल्प की बात आती है, तो वो आपकी प्रस्तुति में गौण हो जाती है।
6.
अपने सुपरिचित रंगशिल्प अर्थात संवादशिल्प के सहारे कथाकार ने अंतत: यहाँ भी आकुलता को व्याकुल ही रहने दिया है, उसे उस के अवचेतन में तृप्त नहीं होने दिया है कलिकथा बाइपास या प्रभा खेतान के मुख्य चरित्रों की तरह।