इससे रक्त-प्रदर, रक्त-मूल-व्याधि (खूनी बवासीर) और रक्तमेह में आराम होगा।
3.
रक्तमेह मूत्रतंत्र के किसी अंग के अथवा रक्त के, विकार से हो सकता है।
4.
रक्तमेह मूत्रतंत्र के किसी अंग के अथवा रक्त के, विकार से हो सकता है।
5.
इसके लक्षण मूत्र त्यागने की बारंबरता, विशेष कर रात में, मूत्र कृच्छ तथा रक्तमेह होते हैं।
6.
पीड़ा रहित, अधिक मात्रा में, बारंबार, समय समय पर रक्तमेह तथा रक्तक्षीणता, मूत्रकृच्छ और अकृष्य मूत्राशय प्रदाह इसके मुख्य लक्षण हैं।
7.
इस कारण प्रथम लक्षण परिस्पृश्य पुंज (palpable mass), अथवा रक्तमेह (heamaturia) आदि प्रकट होने पर तुरंत पूरी जाँच तथा ठीक चिकित्सा होनी चाहिए।
8.
सिकल सेल अपवृक्कता के कारण जीर्ण रीनल विफलता-हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप), प्रोटीनूरिया (मूत्र में प्रोटीन की हानि), रक्तमेह (मूत्र में लाल रक्त कोशिकाओं की हानि) और बदतर रक्ताल्पता से प्रकट होता है.
9.
मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण-पेशाब के साथ अन्न का आना, पेशाब का बहुत कम मात्रा में आना, रक्तमेह, मूत्रलता (diuresis), केन्द्रक अन्नसार (nucleo-albumin) एवं पित्त (bile), फास्फोरिक एसिड की बढ़ी हुई मात्रा के साथ कुल घनसार की मात्रा का घट जाना जैसे लक्षणों में अगर रोगी को काली क्लोरिकम औषधि का सेवन कराया जाए तो ये उसके लिए काफी लाभकारी साबित होता है।