खैर आपकी रच्ना एक संवेद्ना को झकझोरने वाली रचना है.
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काव्य की नज़र से भी पूरी रच्ना, बहुत बहुत बधा ई.
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आपकी रच्ना का जवाब नहीं-राम सेतु-मानव निर्मित या प्राकृतिक?
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लेखक के लेखन की आत्मा का प्रतिबीम्ब या पर्तिलीपी सी रच्ना...शायद.... बनावटी अलन्कारो से मुक्त(
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एक शान्दार रच्ना.-भाई साब, एक “ यू-के-यू-ही ” टाइप का ओब्सर्वेशन है...
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काव्य रच्ना क प्रमुख कारण है-आत्माभिव्यक्ति इच्चा हैं और इस के लिये प्रतिभा आवश्यक होता हैं।
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हम तो यह रच्ना पढ कर आपको इत्ना ही कहेंगे कि: बेवतन हो कर भी, वतन के रंग याद है?
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, आप्का धन्यावाद कि आप्ने इस रच्ना को प्र्तिक्रिया के लायक सम्झा, आगे भी आप्से आप्के विचारो से अव्गत कराते रह्ने क अनुरोध है
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फरीदा वाली रच्ना तो दिल को छू गयी बहुत सही तस्वीर खींची है आपने आज साम्प्रदायिक ताकतें कैसे हथकन्दे अपना कर मानवता को शर्मसार कर रही हैं ।
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गल्ती हो गयी वाहिद भाइ, आगे से ऐसा कोइ लेख नहि.........., जिस्से मेरे अबोध होने पर...., आपकी प्रतिक्रिया के लिये और साथ मे प्रोत्साहन के लिये आभारि हू, वैसे आप्कि अग्ल्री रच्ना कब?