हम स्वामीजी को इस नजरबन्दी और राजबन्दी से अर्जित शिष्ट
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मूर्तिभवन के विषय मेंमौखिक जानकारी पाकर मैंने भी उसे देखने का हठ नहीं किया अन्यथा सम्भव था किहीरों-मुक्ताओं की चमचमाहट, सुवर्ण की दमदमाहट और कुब्जा के रूप की दिपदिपाहटया उसके मदभरे कटाक्ष हमें भूतल की उन बन्द गहराईयों में भी पहुंचा देते जहांसिंह-~ व्याघ्रों के पहरे में दुर्धर्ष राजबन्दी अपनी मृत्यु की एक-एक घड़ीगिनते रहे होंगे! मातामह के प्रासाद को हमने मध्यान्ह में छोड़ा था और अब, जब कि हम रंग भूमिकी ओर जा रहे थे, अपरान्ह बीत चुका था.