बेशुमार तरसना, घने बादलों का कभी कभार बरसना, फटता रहे ज़मीन का सीना बेलब्ज़, नसीब जो है यूँ ही मसलसल लरज़ना-मुश्ताक़ विषामृत मधु करडप से आधारों को अर्थ देना, विष से वन्चित रहकर जीवन व्यर्थ है, स्नेह की प्रीतीची से स्व को कर दीप्तिमान लेना, विषामृत प्रश में महारुद्र समर्थ है|-आशिक़ा 'तन्हा'