| 1. | अपने मित्र स्नेहमय दत्त की सलाह से साहा इम्पीरियल कालेज केप्रोफेसर और वर्णक्रमिकी के विख्यात वैज्ञानिक फाउलर से मिले.
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| 2. | उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट है कि ताराभौतिकी के अध्ययन में वर्णक्रमिकी के साधन की उपयोगिता की एक स्वाभाविक सीमा है।
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| 3. | उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट है कि ताराभौतिकी के अध्ययन में वर्णक्रमिकी के साधन की उपयोगिता की एक स्वाभाविक सीमा है।
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| 4. | उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट है कि ताराभौतिकी के अध्ययन में वर्णक्रमिकी के साधन की उपयोगिता की एक स्वाभाविक सीमा है।
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| 5. | परंतु आगे चलकर परमाणुरचना के ज्ञान और क्वांटम सिद्धांत की सहायता से वर्णक्रमिकी के नियमों का प्रतिपादन सैद्धांतिक रूप से किया जा सका।
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| 6. | परंतु आगे चलकर परमाणुरचना के ज्ञान और क्वांटम सिद्धांत की सहायता से वर्णक्रमिकी के नियमों का प्रतिपादन सैद्धांतिक रूप से किया जा सका।
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| 7. | परंतु आगे चलकर परमाणुरचना के ज्ञान और क्वांटम सिद्धांत की सहायता से वर्णक्रमिकी के नियमों का प्रतिपादन सैद्धांतिक रूप से किया जा सका।
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| 8. | फलत: इन पिंडों के आंतरिक भागों की रचना तथा भौतिक अवस्था के विषय में जानने के लिये वर्णक्रमिकी से भिन्न साधनों की आवश्यकता है।
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| 9. | फलत: इन पिंडों के आंतरिक भागों की रचना तथा भौतिक अवस्था के विषय में जानने के लिये वर्णक्रमिकी से भिन्न साधनों की आवश्यकता है।
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| 10. | फलत: इन पिंडों के आंतरिक भागों की रचना तथा भौतिक अवस्था के विषय में जानने के लिये वर्णक्रमिकी से भिन्न साधनों की आवश्यकता है।
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