वर्णपरिवर्तन की क्रिया के शिथिल पड़ने तथा अंत में रुक जाने की वजह से जातिभेद की नींव डाली गई।
2.
उन सब विषयों से प्रातिशाख्यों का संबंध न होकर केवल वैदिक मंत्रों के शुद्ध उच्चारण, वैदिक संहिताओं और उनके पदपाठों आदि के सधिप्रयुक्त वर्णपरिवर्तन अथवा स्वरपरिवर्तन के पारस्परिक संबंध और कभी कभी छंदोविचार जैसे विषयों से था।