शिक्षक को पित्तप्रकृति (कोपशील) तथा वातप्रकृति (विषादी)
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सकता है और वातप्रकृति, यानि विषादी प्ररूप का ठेठ प्रतिनिधी होने की
3.
कुछ लोग वातप्रकृति के, कुछ पैत्तिक एवं कुछ कफजप्रकृति के होते हैं।
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तरह वातप्रकृति (विषादी) मनुष्य के भावनाओं की गहनता तथा स्थिरता और
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शीतस्वभाव) या वातप्रकृति (विषादी) व्यक्ति के साथ मिलकर काम करता है।
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दुर्बल, व्यक्ति वातप्रकृति के लोग शीतऋतु में घी के साथ दही का सेवन करें ।
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सामान्यतः शिक्षक को पित्तप्रकृति (कोपशील) तथा वातप्रकृति (विषादी) स्वभावोंवाले बच्चों पर विशेष ध्यान देना पड़ता है:
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वातप्रकृति (विषादी)-सुमित पाठों के दौरान चुपचाप, एक ही स्थिति में बैठा और हाथों में कोई चीज़ लिए उलटता-पुलटता रहता है।
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वातप्रकृति (विषादी) मनुष्य संवेदनशील, सहज ही चोट खा जानेवाला, बाहर से संयत लगने पर भी भावुक, मंदगति और मंदभाषी होता है।
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ये चार प्रकार के स्वभाव इस प्रकार थे: रक्तप्रकृति (प्रफुल्लस्वभाव, उत्साही), श्लैष्मिक प्रकृति (शीतस्वभाव), पित्तप्रकृति (कोपशील) और वातप्रकृति (विषादी) ।