| 1. | इसे वातानुलोमक मानकर कई योगों में युनानी वैद्य प्रयुक्त करते हैं ।
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| 2. | आचार्य भाव मिश्र [1500-1600] रचित भाव प्रकाश निघंटु के अनुसार इसकी छाल का उपयोग वातानुलोमक एवं प्रतिदूषक होता है।
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| 3. | आचार्य भाव मिश्र (१५००-१६००) रचित भाव प्रकाश निघंटु के अनुसार इसकी छाल का उपयोग वातानुलोमक एवं प्रतिदूषक होता है ।
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| 4. | मुख्य रुप से इसका प्रयोग सुखी बबासीर मे किया जाता है, इसका आचार वातशामक और वातानुलोमक होता है ।
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| 5. | मुख्य रुप से इसका प्रयोग सुखी बबासीर मे किया जाता है, इसका आचार वातशामक और वातानुलोमक होता है ।
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| 6. | यह रस वातहर, वातानुलोमक, पित्तशामक, विषनाशक, रक्तप्रसादक, मस्तिष्क पुष्टिकर व दिल को बल देने वाला है।
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| 7. | आयुर्वेदिक मतानुसार भी यह वातानुलोमक होने से उदर शूल में, मधुर होने से आमाशयगत अम्लाधिक्य व अम्ल पित्त में लाभकर होती है ।
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