| 1. | आह्! से वाह्! तक का सफर निर्विध्न सम्पन्न हो:-)
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| 2. | सौम्य और शान्त जाने कितना गहरा होगा उतरुँ तो जानूँ... वाह्! बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ....
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| 3. | हीरा खोजै जौहरी, ढोल बजावत जाय तोल-मोल भारी पड़ा, दिया खोट बतलाय भई वाह्!
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| 4. | वाह! वाह्! महाराज! ध्यान रहे ये सच्ची मुच्ची वाली वाह वाह है, बुद्धिजीवियों वाली नहीं:)
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| 5. | हा हा हा! हा! वाह्! क्या चुन चुनकर लतीफे लाएं हैं...तीन रूपये की नमकीन दे दे:-)
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| 6. | बिणजारी ए हंस हंस बोल.. टांडो लद ज्यासी.... वाह्! भावार्थ जानकर कविता का आनन्द दूना हो गया।
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| 7. | लेकिन आपके इस प्रयास की हौंसला अफजाई के लिए वाह! वाह्! तो कर ही सकते हैं:)
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| 8. | हा हा हा!!!! वाह्! बिल्कुल खरी कही! वैसे भी यहाँ तो घर घर में भगवान विराजमान हैं।
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| 9. | वाह्! वाह्! बडे ही प्यार से घो डाला!!! मठाधीश वाली बात हमे तो समझ आई पर समिरलालाजी अभी भी अनजान बन रहे है।
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| 10. | सोच कर तो हम भी यही आए थे कि टिप्पणी कर देंगे कि “वाह्! वाह्! क्या खूब लिखा है”लेकिन आपकी पोस्ट पढकर विचार बदलना पडा..))
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