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विकारक इन इंग्लिश

उच्चारण: [ vikarak ]  आवाज़:  
विकारक उदाहरण वाक्य
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actinic
उदाहरण वाक्य
1.4 संज्ञा और संज्ञा के विकारक तत्व

2.भी किया जाय, तो उसकी विकारक शक्ति और भी बढ़

3.जिन तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) का रूपांतर होता है वे विकारक तत्व कहलाते हैं।

4.अध्याय 5 संज्ञा के विकारक तत्व जिन तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) का रूपांतर होता है वे विकारक तत्व कहलाते हैं।

5.अध्याय 5 संज्ञा के विकारक तत्व जिन तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) का रूपांतर होता है वे विकारक तत्व कहलाते हैं।

6.जब भोजन में अधिक वात विकारक, गरिष्ठ और प्रकृति विरूद्ध खाद्य पदार्थो का सेवन किया जाता है तो पाचन क्रिया की विकृति से उदर शूल की उत्पत्ति होती है।

7.शृंगार रस की कविता विलासिता को उत्तोजित करती है, यह एक सर्वसिध्द बात है और जब शृंगार के साथ कविता में विद्या, धर्म, आचार, नियम, संयम, और सिध्दान्त का अपमान भी किया जाय, तो उसकी विकारक शक्ति और भी बढ़ जाती है।

8.चिकित्सा विज्ञान फलसमन्वित ऐसा शास्त्र है, जिसमें ऐसे उपायों के उपयोगों का वर्णन है जो लोकस्वास्थ्य तथा वैयक्तिक स्वास्थ्य की दृष्टि से, शरीर संबंधी सभी अवस्थाओं में, आवश्यतानुसार (1) रोगोन्मूलक तथा निवारक, (2) घटना नियंत्रक तथा सुधारक, (3) अभावपूरक, (4) विकारक तथा विकृत अंगों के निष्कासक, (5) कुरूपता तथा असमर्थता के निवारक, (6) क्षतांगों के प्रतिस्थापक एवं विकलांगों के पुनर्वासक और विभिन्न प्रकार की आंत्र तथा फुफ्फुस यक्ष्मा की चिकित्सा तथा अन्य नैदानिक कार्यों में उपयोगी।

9.चिकित्सा विज्ञान फलसमन्वित ऐसा शास्त्र है, जिसमें ऐसे उपायों के उपयोगों का वर्णन है जो लोकस्वास्थ्य तथा वैयक्तिक स्वास्थ्य की दृष्टि से, शरीर संबंधी सभी अवस्थाओं में, आवश्यतानुसार (1) रोगोन्मूलक तथा निवारक, (2) घटना नियंत्रक तथा सुधारक, (3) अभावपूरक, (4) विकारक तथा विकृत अंगों के निष्कासक, (5) कुरूपता तथा असमर्थता के निवारक, (6) क्षतांगों के प्रतिस्थापक एवं विकलांगों के पुनर्वासक और विभिन्न प्रकार की आंत्र तथा फुफ्फुस यक्ष्मा की चिकित्सा तथा अन्य नैदानिक कार्यों में उपयोगी।

10.चिकित्सा विज्ञान फलसमन्वित ऐसा शास्त्र है, जिसमें ऐसे उपायों के उपयोगों का वर्णन है जो लोकस्वास्थ्य तथा वैयक्तिक स्वास्थ्य की दृष्टि से, शरीर संबंधी सभी अवस्थाओं में, आवश्यतानुसार (1) रोगोन्मूलक तथा निवारक, (2) घटना नियंत्रक तथा सुधारक, (3) अभावपूरक, (4) विकारक तथा विकृत अंगों के निष्कासक, (5) कुरूपता तथा असमर्थता के निवारक, (6) क्षतांगों के प्रतिस्थापक एवं विकलांगों के पुनर्वासक और विभिन्न प्रकार की आंत्र तथा फुफ्फुस यक्ष्मा की चिकित्सा तथा अन्य नैदानिक कार्यों में उपयोगी।

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