| 1. | स्पर्श विरोधी प्रयत्न ‘ विवृत्त ' कहलाता है।
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| 2. | अ, इ, ऋ, लृ, उ ये पूर्ण विवृत्त स्वर हैं।
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| 3. | भुक्तशेष ईंधन का पुनर्संसाधन => विवृत्त अथवा संवृत चक्र की विधि द्वारा
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| 4. | भुक्तशेष ईंधन का पुनर्संसाधन = > विवृत्त अथवा संवृत चक्र की विधि द्वारा
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| 5. | अ, इ, ऋ, लृ, उ ये पूर्ण विवृत्त स्वर हैं।
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| 6. | विवृत्त-इसका अर्थ है उच्चारकों का एक दूसरे से बिलकुल स्पर्श ना होना।
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| 7. | विवृत्त-इसका अर्थ है उच्चारकों का एक दूसरे से बिलकुल स्पर्श ना होना।
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| 8. | प्रश्न: सहवास से विवृत्त होते ही पत्नी को तुरंत उठ जाना चाहिए या नहीं?
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| 9. | प्रश्न: सहवास से विवृत्त होते ही पत्नी को तुरंत उठ जाना चाहिए या नहीं?
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| 10. | पातंजल योगदर्शन में विवृत्त अष्टांगयोग में आसन का स्थान तृतीय एवं गोरक्षनाथादि द्वारा प्रवर्तित षडंगयोग में प्रथम है।
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