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विश्वेदेव वाक्य

उच्चारण: [ vishevedev ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • मुनि बोले: राजन्! हम लोग विश्वेदेव हैं ।
  • इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता।
  • इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता।
  • इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता।
  • सब पितर विश्वेदेव अश्विनि और सिद्ध बड़े बड़े..
  • राजा ज्यामघ के इस वचन का विश्वेदेव और पितरों ने अनुमोदन किया।
  • तुम वहां जाओ और उन ब्राम्हणों को विश्वेदेव संबंधी दो सूक्त बतला दो।
  • मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं.
  • कहा गया है कि नाम गोत्र के सहारे विश्वेदेव एवं अग्निष्वात् आदि दिव्य पितर हव्य-कव्य को पितरों को प्राप्त करा देते हैं।
  • यही बात यज्ञोपवित मै बताई गई है!! तंतु देवता ओमकार,अग्नि,नाग,सोम,पितृ,प्रजापति,अनिल,यं और विश्वेदेव है!! ग्रंथि देवता ब्रह्मा,विष्णु और इन्द्र है!!
  • जिनमें महर्षि अत्रि द्वारा विशेष रूप से अग्नि, इन्द्र, मरूत, विश्वेदेव तथा सविता आदि देवों की महनीय स्तुतियाँ ग्रथित हैं।
  • प्रभव । अतिवह आदि उनचास मरुदगण हैं । पुरुरवा । आर्द्रव । धुरि । लोचन । क्रतु । दक्ष । सत्य । वसु । काम । काल । ये दस विश्वेदेव हैं ।
  • ब्रह्मपुराण के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरों के अलावा ब्रह्म, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, विश्वेदेव एवं मनुष्यगण को भी प्रसन्न कर देता है।
  • ब्रह्मपुराण के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरों के अलावा ब्रह्म, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, विश्वेदेव एवं मनुष्यगण को भी प्रसन्न कर देता है।
  • ब्रह्मपूराण के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरो के अलावा ब्रह्म, इन्द्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सुर्य, अग्नि, वायु, विश्वेदेव, एवं मनुष्यगण को भी प्रसन्न कर देता है।
  • इस मंवंतर के देवता-साध्य, रूद्र, विश्वेदेव, वसु, मरुदगन, आदित्य और अश्विनी कुमार वैवस्वत मनु के पुत्र-इक्ष्वाकु आदि हुए / भविष्य के मनु सावर्नी मंवंतर के सप्त ऋषि.
  • यदि और गहराई में चले तो दस विश्वेदेव, छत्तीस तुषित, चौसठ आभास्वर, उनचास वायु और दो सौ बीस महाराजिक मिलकर कुल चार सौ बारह गण यानि समूह देवताओं के स्वामी श्री गणेश जी महाराज है.
  • भावार्थ: जो ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं-वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं॥ 22 ॥
  • ऐसा मनुष्य ब्रह्मा, इन्द्र, रूद्र, नासत्य (अश्विनी कुमार), सूर्य, अनल (अग्नि), वायु, विश्वेदेव, पितृगण, मनुष्यगण, पशुगण, समस्त भूतगण तथा सर्पगण को भी संतुष्ट करता हुआ संपूर्ण जगत को संतुष्ट करता है।
  • पुराणों के अनुसार श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं।
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