तात्पर्य यह है कि गौड़-देशवासी प्राकृत भाषा की कविता पढ़ना नहीं जानते या उनका पाठ विस्वर और कर्णकटु होता है।
3.
सांध्यकाल एक अधेड़ पुरुष महादेव जी की आरती कर रहे थे. मैं पोथियाँ उलटने-पलटने लगा. अधेड़ पुरुष ने टोका, '' पोथियाँ जहाँ की तहाँ रखना रे बटु क. '' फिर वह आरती गाने लगे. वाराणसी में इतना विस्वर दुर्लभ ही था.