वो भारत, जहाँ शास्त्रार्थ होते थे, वहाँ अराजकता और व्यभिचारिता का वर्चस्व हो गया है.
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व्यभिचारिता, परस्त्रीगमन, अस्वच्छता, कामुकता, मूर्ति-पूजा, जादू-टोना, घृणा, मतभेद, यंत्रानुकरण, क्रोध, कलह, राजद्रोह, मतान्तर, इर्ष्या, हत्याएं, नशाखोरी, रंगरेलियां एवं इसी “प्रकार के और भी पाप”.
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व्यभिचारिता, परस्त्रीगमन, अस्वच्छता, कामुकता, मूर्ति-पूजा, जादू-टोना, घृणा, मतभेद, यंत्रानुकरण, क्रोध, कलह, राजद्रोह, मतान्तर, इर्ष्या, हत्याएं, नशाखोरी, रंगरेलियां एवं इसी “प्रकार के और भी पाप”.
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कुल मिलकर मैं यही कहना चाहता हूँ की हम सब कितने बदल गए हैं …………….. और ये भी जानते है की आधुनिकीकरण के नाम पर सारे बदलाव अच्छे नहीं है | व्यभिचारिता, योनशोसन, नशा, इत्यादि से हमें सख्त बच कर रहने की आवश्यकता है क्यूंकि ये बीमारियाँ एड्स से बढ़कर हैं जिनसे सिर्फ बचाव ही उपाय है | धन्यवाद जय श्री राम