वेद-वाक्य में भी जो वाक्य `विध्यर्थक ' हैं, वे ही शब्द-प्रमाण हैं.
2.
ये शब्द अपौरुषेय तथा नित्य हैं, अर्थात यह शब्द-प्रमाण स्वतःप्रमाण हैं.
3.
गांधीजी स्वयं भी नहीं चाहते थे कि शब्द-प्रमाण की दुहाई देकर हम उनकी बातें जैसी की वैसी ग्रहण करें।
4.
अन्य प्रमाण के बिना जो अर्थ केवल शब्द्प्रमाण से जाना जाये, वह अदृष्टार्थ शब्द-प्रमाण कहा जाता है.
5.
शब्द प्रमाण से जाने गए जिस अर्थ को इसी देह के साथ रहते, अथवा इसी जीवन में जाना जा सके, वह दृष्टार्थ शब्द-प्रमाण है.
6.
शब्द प्रमाण से जाने गए जिस अर्थ को इसी देह के साथ रहते, अथवा इसी जीवन में जाना जा सके, वह दृष्टार्थ शब्द-प्रमाण है.
7.
अन्य प्रमाण के बिना जो अर्थ केवल शब्द्प्रमाण से जाना जाये, वह अदृष्टार्थ शब्द-प्रमाण कहा जाता है.यह शब्दप्रमाण का विभाग वस्तुतः वैदिक वाक्य और लौकिक वाक्य के आधार पर है.
8.
और भी, जब मतभेद का आधार ही शब्द प्रमाण हो तो उसके निराकरण और संगति के लिये शब्द-प्रमाण की मांग अनुचित तो नहीं है | मेरा कोई ऐसा आग्रह नहीं कि आप प्रमाण देवें ही सही नहीं तो आपकी बात का कोई मूल्य ही नहीं |