पुन: शाश्वतवाद की ओर हमें घसीट ले जाता है, जो एक दोष है।
2.
अन्यत्र कालवाद, स्वभाववाद नियतिवाद, अज्ञानवाद, अक्रियावाद, क्रियावाद, शाश्वतवाद उच्छेदवाद आदि दृष्टियों का उल्लेख प्राप्त होता है।
3.
उक्त संबंध में बुद्ध ने कहा है कि भिक्षुओं! कुछ श्रमण और ब्राह्मण शाश्वतवाद को मानते हैं।
4.
अस्तित्ववाद, शाश्वतवाद, रस-सिद्धान्त, पूंजीवाद, लोकतंत्रवाद, भारतीय संस्कृतिवाद, आदि हर दृष्टि से हमारी यह दुकान-योजना परम ठोस थी।
5.
नीत्शे की प्रसिद्ध उक्ति है, परंतु इस उक्ति के द्वारा वह मूल्यों में शाश्वतवाद के अंत का तथा मानव-मन में व्याप्त अनास्था का निर्देश तो करना ही चाहता है।
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नीत्शे की प्रसिद्ध उक्ति है, परंतु इस उक्ति के द्वारा वह मूल्यों में शाश्वतवाद के अंत का तथा मानव-मन में व्याप्त अनास्था का निर्देश तो करना ही चाहता है।
गीता शाश्वतवाद तथा उच्छेदवाद की तरह किसी एकांगी अवधारणा का प्रतिपादन नहीं करती, बल्कि आध्यात्मिक चिंतन का व्यावहारिक जीवन के साथ सुन्दर समन्वय प्रस्तुत करती है जिसमें ज्ञान, भक्ति व कर्म तीनों का समावेश दिखाई देता है।
परिभाषा
यह दार्शनिक सिद्धांत कि आत्मा एक रूप, चिरंतन और नित्य है, उसका न तो कभी नाश होता है और न कभी उसमें किसी तरह का विकार आता है:"हमारे गुरुजी शाश्वतवाद के अनुयायी हैं" पर्याय: शाश्वत-वाद, शाश्वत_वाद,