| 1. | श्रुतिकटु मानकर कुछ वर्णों का त्याग, वृत्तविधान, लय,
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| 2. | यदि श्रोता (बोद्धा) वैयाकरण हो, तो भी श्रुतिकटु दोष काव्यदोष न होकर गुण हो जाता है।
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| 3. | भारी या बैठी हुई अवाज वाला, रूखे स्वर का, बैठे हुए गले के स्वर का, फटी आवाज वाला, बेसुरा, श्रुतिकटु
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| 4. | मार्क्स ने कहा है कि समाज को व्याधिमुक्त करने का सहज उपाय है कि भाषा से सारे श्रुतिकटु शब्द निकाल दें.
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| 5. | इसी प्रकार यदि कहीँ बीभत्स रस, वीररस आदि व्यंग्य हों, तो श्रुतिकटु या बड़े समासयुक्त पदों का प्रयोग गुण हो जाता है।
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| 6. | इसी प्रकार वाच्य (वर्णन का आधार) के आधार पर भी श्रुतिकटु वर्णों या अधिक समास वाले पदों का प्रयोग काव्यदोष न होकर काव्य के गुण बन जाते हैं।
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