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षट्खंडागम वाक्य

उच्चारण: [ setkhendaagam ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • षट्खंडागम सूत्रों की रचना का जो इतिहास उसके टीकाकार वीरसेनाचार्य ने दिया है, उसके अनुसार वीर निर्वाण से ६८३
  • षट्खंडागम ' के आधार से रचित आचार्य कुन्दकुन्द के ‘ पंचास्तिकाय ', ‘ प्रवचनसार ' आदि आर्ष ग्रन्थों में भी [...]
  • परन्तु इस युग में सबसे पहले इस मंत्र का सर्वप्रथम प्रयोग ‘ षट्खंडागम ' नामक ग्रन्थ में ‘ मंगलाचरण ' के रूप में हुआ है ।
  • वहीं उन्होंने पुष्पदंत और भूतवलि नामक आचार्यों को बुलवाकर उन्हें वह ज्ञान प्रदान किया, जिसके आधार पर उन्होंने पश्चात् द्रविड़ देश में जाकर षट्खंडागम की सूत्र-रूप रचना की।
  • ' षट्खंडागम ' के आधार से रचित आचार्य कुन्दकुन्द के ' पंचास्तिकाय ', ' प्रवचनसार ' आदि आर्ष ग्रन्थों में भी उनके कुछ और अधिक उद्गमबीज मिलते हैं।
  • षट्खंडागम * में श्रुत के पर्याय-नामों को गिनाते हुए एक नाम ' हेतुवाद ' भी दिया गया है, जिसका अर्थ हेतुविद्या, न्यायविद्या, तर्क-शास्त्र और युक्ति-शास्त्र किया है।
  • षट्खंडागम के वेदना नामक चतुर्थखण्ड के आदि में जो नमस्कारात्मक सूत्र पाये जाते हैं, उनमें दशपूर्वों के और चौदहपूर्वों के ज्ञाता मुनियों को अलग-अलग नमस्कार किया गया है (नमो दसपुव्वियाणं, नमो चउद्दसपुव्वियाणं) ।
  • जैसे वीरसेन स्वामी ने अपनी संस्कृत प्राकृत मिश्रित धवला टीका द्वारा षट्खंडागम के रहस्यों का उद्घाटन किया है उसी प्रकार केशववर्णी ने भी अपनी इस जीवतत्त्व प्रदीपिका द्वारा जीवकाण्ड के रहस्यों का उद्घाटन कन्नड़ मिश्रित संस्कृत में किया है।
  • इस प्राकृत का ई. पू. तीसरी शताब्दी मं पश्चिम भारत और उसके सौ, डेढ़ सौ वर्ष पश्चात् जैन षट्खंडागम आदि ग्रंथों एवं कुंदकुंदाचार्य आदि की दक्षिण प्रदेश की रचनाओं में पाया जाना उसकी तत्कालीन दिग्विजय तथा सार्वभौमिकता का प्रमाण है।
  • इस प्राकृत का ई. पू. तीसरी शताब्दी मं पश्चिम भारत और उसके सौ, डेढ़ सौ वर्ष पश्चात् जैन षट्खंडागम आदि ग्रंथों एवं कुंदकुंदाचार्य आदि की दक्षिण प्रदेश की रचनाओं में पाया जाना उसकी तत्कालीन दिग्विजय तथा सार्वभौमिकता का प्रमाण है।
  • षट्खंडागम सूत्रों की रचना का जो इतिहास उसके टीकाकार वीरसेनाचार्य ने दिया है, उसके अनुसार वीर निर्वाण से ६ ८ ३ वर्ष की श्रुतज्ञानी आचार्यों की अविच्छिन्न परम्परा के कुछ काल पश्चात् धरसेनाचार्य हुए, जो गिरिनगर (गिरिनार, काठियाबाड़) की चन्द्रगुफा में रहते थे।
  • उद्भव आचार्य भूतबली और पुष्पदन्त द्वारा निबद्ध ‘ षट्खंडागम ' * में, जो दृष्टिवाद अंग का ही अंश है, ‘ सिया पज्जत्ता ', ‘ सिया अपज्जता ', ‘ मणुस अपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ', ‘ अखंखेज्जा * ‘ जैसे ‘ सिया ' (स्यात्) शब्द और प्रश्नोत्तरी शैली को लिए प्रचुर वाक्य पाए जाते हैं।

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