अब अर्जुन सिंह तो नहीं रहे इसलिए कांगे्रस पार्टी के भीतर अकेले दिग्विजय सिंह इस मुद्दे के लिए ओवरटाईम करते हुए संघ-विरोध की विश्वसनीयता को खत्म सा कर चुके हैं और संघ के खिलाफ लगने वाले आरोपों को हल्का भी कर चुके हैं।
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जब ये साहब माकपा में थे तब उन्होंने मास्को का दौरा भी किया था और मुम्बई की लोकल ट्रेनों में “साम्प्रदायिकता” (ज़ाहिर है कि हिन्दू साम्प्रदायिकता) के खिलाफ़ सैकड़ों पोस्टर चिपकाये थे, ये पोस्टर जावेद आनन्द और तीस्ता सीतलवाड के साथ मिलकर इन्होंने संघ-विरोध और सेकुलर-समर्थन में लगाये थे।
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जब ये साहब माकपा में थे तब उन्होंने मास्को का दौरा भी किया था और मुम्बई की लोकल ट्रेनों में “ साम्प्रदायिकता ” (ज़ाहिर है कि हिन्दू साम्प्रदायिकता) के खिलाफ़ सैकड़ों पोस्टर चिपकाये थे, ये पोस्टर जावेद आनन्द और तीस्ता सीतलवाड के साथ मिलकर इन्होंने संघ-विरोध और सेकुलर-समर्थन में लगाये थे।