राजनीति या किसी भी दूसरे विषय या विचार से साहित्य का रिश्ता, वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण के शब्दों में कहें तो, ÷ बहुत सट कर नहीं, थोड़ा हट कर, संदर्भपरक और वक्र बनता है क्योंकि विचारों की गति तर्कमूलक और बौद्धिक होती है इसीलिए किसी हद तक योजनाबद्ध और बेलोच, जबकि साहित्य के मूल अवयव कल्पना और अनुभूति हैं।