कल्पसूत्रों का प्रतिपाद्य विषय है वैदिक विधिविधानों, कर्मानुष्ठानों, न्यायनियमों, रीतिव्यवस्थाओं और धर्मादेशों-धर्मोपदेशों का संक्षिप्त, संदेहहीन और निर्दोष रूप में निरूपण विवेचन करना।
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सुदर्शना सब ओर से छुटी, इस समूचे अँधेरे सन्नाटे भरे शून्य के बीच में से निरुद्देश्य अनजानी रा ह पर जि सके साथ चली जा रही है, उसी के प्रति वह अपने में शंका कहाँ से लाए? वह चली ही जा रही है, शब्दहीन, संदेहहीन, निर्व्याज और सम्यगभाव से, जिसे करने को न प्रश्न की आवश्यकता है, न उत्तर की अपेक्षा है।