व्यवहार आत्मा ' संयोगाधीन है और ' निश्चय आत्मा ' से एकता है।
3.
मनुष्य संयोगाधीन है, परंतु खुद ऐसा मानता है कि, ' मैं कुछ करता हूँ ' ।
4.
हमने बचपन में तय किया था कि जहाँ तक हो सके झूठ की लक्ष्मी घर में घुसने नहीं देनी है और यदि संयोगाधीन घुस जाए तो उसे धंधे में ही रहने देनी, घर में घुसने नहीं देनी है।