संराधन समझोता को एक विधिक व बाध्यकारी स्थित प्राप्त है।
2.
संराधन अधिकारी को यह अधिकार दिया गया कि जनोपयोगी सेवा विषयक सभी झगड़े अनिवार्य रूप से पंचप्रणाली द्वारा सुलझाएँ।
3.
इस अधिनियम में इस बात की व्यवस्था थी कि उपयुक्त अधिकारी द्वारा जाँच-अदालत अथवा संराधन मंडल (कॉनसिलिएशन बोर्ड) स्थापित किया जाए जो विवादग्रस्त मामलों में समझौता कराए।
4.
जाँच अदालत के जिम्मे यह काम रखा गया कि वह मामले की जाँच कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे तथा संराधन मंडल उस मामले में समझौता कराने का प्रयास करे।
5.
इसके साथ ही इस अधिनियम द्वारा सरकार को यह भी अधिकार दिया गया कि वह संराधन अधिकारी नियुक्त करे जो औद्योगिक विवादों में समझौता कराने का मार्ग निकालें और आवश्यकतानुसार मध्यस्थता भी करें।
6.
इतना होते हुए भी विवादों के हल के लिए अधिनियम में स्थायी व्यवस्था नहीं थी और न यही व्यवस्था थी कि संराधन मंडल अथवा जाँच-अदालत के निर्णय दोनों पक्षों के लिए अनिवार्य रूप से मान्य हों।
7.
1-सेवा समाप्ति के समस्त प्रकार के व्यक्तिगत विवादों को संराधन तंत्र में न प्रस्तुत कर, सीधे श्रम न्यायालय में दाखिल करने की व्यवस्था की जाय जिससे संदर्भादेश में होने वाले अत्यधिक विलम्ब को समाप्त किया जा सकें।
8.
श्रम के प्रश्न पर जो राजकीय आयोग स्थापित हुआ उसने सुझाव दिया कि राज्य सरकार द्वारा स्थायी रूप से संराधन अधिकारी नियुक्त किए जाएँ, जिनका यह कर्तव्य हो कि औद्योगिक विवाद उठ खड़ा होने पर आरंभ में ही उभय पक्षों में समझौता करा दें।
9.
औद्योगिक विवादों के आपसी बातचीत द्वारा समाधान हेतु अधिनियम की धारा-4 के अन्तर्गत संराधन अधिकारी की नियुक्ति, उचित सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में प्रकाशन द्वारा करने की व्यवस्था है, जिन्हें औद्योगिक विवादों में मध्यस्थता करने, समाधान को प्रोत्साहित करने की जिम्मेंदारी दी गयी है।
10.
द्वितीय महायुद्ध के समय सन् १९४२ में भारत-रक्षा-नियमावली में एक व्यवस्था की गई जिसके द्वारा सरकार को अधिकार दिया गया कि हड़ताल और तालाबंदी रोकने के लिए वह सामान्य अथवा विशेष नियम बनाए तथा ऐसे किसी भी विवाद को संराधन अथवा न्यायिक निर्णय के लिए सौंपे जिससे जनता को कष्ट पहुँचता हो अथवा युद्धसामग्री की पूर्ति के कार्य में बाधा पहुँचती हो।