प्राप्ति की प्रतिषेधात्मक इच्छा की सदोषता और निर्दोषता लोभ के विषय पर
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जात-पाँत का जंजाल, छुआछूत का पागलपन, विवाह-शादियों में अपव्यय का उन्माद, बाह्य पूजा-पाठ का ढोंग आदि कितनी ही बातों की सदोषता अब भली प्रकार सिद्ध हो गई है, फिर भी लोग परंपरा के नाम पर उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं होते और सब तरह के छलबल से भी उनको कायम रखने का दुराग्रह करते हैं।