| 1. | श्वास-प्रेक्षा के तीन प्रकार हैं-दीर्घ, सहज एवं समवृत्ति ।
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| 2. | समवृत्ति श्वास के प्रयोग से जहाँ मैत्री-भाव का विकास होता है, वहां वैर, शत्रुता, प्रतिशोध आदि का भाव समाप्त हो जाता है।
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| 3. | यह पूर्ण चेतना और समवृत्ति की एक अवस्था है जिसका अनुभव इस जीवित शरीर को धारण किये हुए ही इसी संसार में अभी ही किया जा सकता है.
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| 4. | यह पूर्ण चेतना और समवृत्ति की एक अवस्था है जिसका अनुभव इस जीवित शरीर को धारण किये हुए ही इसी संसार में अभी ही किया जा सकता है.
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| 5. | इस संसार में जो महात्मा शम से शोभित एवं सब लोगों द्वारा प्रशंसित समवृत्ति से सबके साथ सुन्दर बर्ताव करता है, उसी का जीवन सार्थक है, दूसरे का नहीं।
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