इस तरह की सहस्थिति प्रेमचंद को बहुलतावादी बनाती है।
2.
उनमें ' सहस्थिति ' और ' संपर्क ' का चित्रण करते हैं।
3.
वह इस तथ्य को भी चित्रित करते हैं कि विभिन्न वर्गों में ' सहस्थिति ' और ' संपर्क ' है।
4.
* राहु / केतु यदि कारक ग्रह के साथ विराजमान हो जाए तो वह कारक ग्रह भी बन जाता है अर्थात सहस्थिति अनुसार यदि त्रिकोण भाव से त्रिकोणेश के साथ बैठे तो अपनी शक्ति भी भाग्येश त्रिकोणेश को देकर दुगना प्रभाव दे देगा (हाँ अष्टम द्वादश में पापी ग्रह के साथ यह अवश्य मृत्युकारी, कष्टकारी योग भी छाया ग्रह होने के कारण देगा)।